edit प्राचार्य की कलम से...
स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर
छात्रों में विस्मय, जिज्ञासा, कौतूहल एवं आकर्षण स्पष्टतः निहित होता है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए वे बहुविधि चेष्टायें करते हैं। वर्तमान समय नवीनता और प्राचीनता का संक्रमण युग है। आज का छात्र कल का नागरिक है। उसके सबल व दृढ़ कंधों पर ही देश के नव-निर्माण और विकास का भार होगा। युवा शक्ति का सागर है, उत्साह का अजस्र स्रोत है। आज ही नहीं प्राचीन काल से ही युवा की शक्ति सर्वमान्य है। युवा चेतना, साहस व शौर्य दोनों से परिपूर्ण रहता है। सशक्तिकरण चेतना का प्रश्न है जो व्यक्ति और समुदाय को अपना उत्तरोत्तर विकास करने का आधार और अवसर देता है।
शिक्षा वास्तव में मनुष्य को चेतनशील प्राणी बनाती है। चेतना के कारण ही मनुष्य में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास, दायित्वबोध, सौंदर्यबोध, न्यायबोध, विवेक और राष्ट्रीयता पैदा होती है। हमारी प्राचीन गुरूकुलीय शिक्षा पद्धति पूर्णतः भिन्न थी। यह प्रणाली अत्यंत विस्तृत थी और सामाजिक दृष्टि से सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशक तथा शैक्षणिक दृष्टि से गुणवत्ता युक्त थी। भारतीय चिन्तकों, ऋषियों, मुनियों आदि ने संस्कार आधारित शिक्षा पद्धति की नींव रखी। उनका मानना था कि संस्कार आधारित शिक्षा समाज की अलग- अलग परंपराओं में रह कर भी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती हुई देश की एक विशिष्ट पहचान के रूप में बनी रहती है। उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी हो जिसके द्वारा एक ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत हो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो और जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलता पूर्वक कर सके।
हमारे ऋषियों ने कहा है कि "उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत"। अर्थात उठकर कार्यशील बनो। आलस्य में जीवन नष्ट न करो, साथ ही हर क्षण सतर्क रहो, जागरूक रहो जिससे तुम प्राप्त हुए अवसर का उपयोग कर सको। यदि तुम्हें अपने कर्तव्य के विषय में कभी शंका या संशय उत्पन्न हो तो अपने से बुद्धिमान, ज्ञानवान सत्पुरुषों के पास जाकर उनसे ज्ञान प्राप्त करो।
विद्यार्थियों की उम्र उनके जीवन का स्वर्णिम समय होता है। इस समय वे ज्ञानार्जन कर अपने जीवन को प्रगति के पथ पर अग्रसर करते हुए राष्ट्र के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा कर सुख- समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार वे अपने जीवन को सार्थक एवं उपयोगी बना सकते हैं। समस्त विद्यार्थियों को समुन्नति की इस सीमा तक आने का अवसर महाविद्यालय उपलब्ध कराता है।
भारतीय ज्ञान मीमांसा अनंत ज्ञान राशि की द्योतक है। इसमें चिन्तन के विशिष्ट और विस्तृत सोपान हैं। वेद, उपनिषद, आरण्यक, ब्राह्मण ग्रन्थ, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतियाँ आदि वांग्मय जहां एक तरफ भारतीय ज्ञान परम्परा के वाचक हैं, वहीं यहां के आनुभविक जीवन सत्य भी हैं। शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य को व्यक्ति और समष्टि के रूप में निरंतर बेहतर बनाते जाना है, यानी ऐसे समाज की रचना करनी है जिससे मनुष्य और समाज दोनों लगातार पहले से अधिक रचनाशील और विकासशील होता जाए। कुल मिलाकर शिक्षा स्वयं जीवन के उच्चतर धरातल पर जाने की प्रक्रिया है।
समुचित शिक्षा एवं मार्गदर्शन द्वारा छात्र-छात्राएं अधिक आर्थिक स्वतंत्रता, अधिक सामाजिक योग्यता तथा स्पष्ट रूप से व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान एवं सम्पूर्ण जीवन में आने वाली रूचि पूर्ण क्रियाओं की उन्नति प्राप्त करते हैं। महाविद्यालय हमारे लिए पथ भी बनाता है, पथ प्रदर्शन का कार्य भी करता है। इस महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं द्वारा व्यतीत किया जाने वाला समय उनके जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण समय है। उन्हें समुन्नति की सीमा तक आने का समय मिलता है। इस अवधि में वे समृद्ध पुस्तकालयों, विभिन्न प्रयोगशालाओं और अपने सुयोग्य गुरूजनों के माध्यम से ज्ञान के विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर जीवन को सार्थक- सफल, उपयोगी बना सकते हैं। विद्यार्थी ही हमारे देश और संस्कृति के भावी रक्षक एवं प्रतिनिधि हैं। विद्यार्थी दैनिक अंतरक्रिया के माध्यम से परिपक्व मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। उनमे नवाचार पूर्वक सोचने, आलोचनात्मक तर्क करने, प्रभावशाली सम्प्रेषण और अन्य संस्कृतियों के प्रति सम्मान की दृष्टि सहित चारित्रिक गुण, रोजगार के साथ - साथ आजीविका के उपार्जन, राष्ट्रबोध, सामाजिक संवेदना व उत्तरदायित्व का भाव विकसित हो। यही स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर का ध्येय वाक्य है।